Description
साथियों मेरा रूझान साहित्य के नौ रसों में से एक श्रृंगार रस के प्रति रहा है। और विभिन्न रंगों से सज्जित प्रकृति में श्रृंगार रस के विरह रस ने मुझे ज्यादा लुभाया है। निश्चित ही मेरी कलम भी उसी से प्रेरित है।
इसी क्रम मे मेरी पुस्तक रिसते ज़ख्म और * कसक* के प्रकाशन के बाद तृतीय पुस्तक * अधूरी प्यास * आपके हाथ मे है । अधूरी प्यास मे भी हर एक ग़ज़ल में मैंने प्रेमी युगल की सिर्फ विरह वेदना का पक्ष उजागर करते हुए लिखने का प्रयास किया है।
मेरी तृतीय कृति * अधूरी प्यास * आज आपके हाथों में है, मुझे विश्वास है, यह आपको अवश्य पसंद आएगी।
डॉ. अनिल श्रीवास्तव
पारा, जिला झाबुआ
(मध्य प्रदेश)
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