Description
साथियोंए आज मैं अपनी नवीन कृति के बारे में आपसे कुछ कहूंए इससे पूर्व एक मान्यता का जिक्र करना चाहूंगा। वह यह कि ष्किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके विचाराभिव्यक्ति के आधार पर तय होती है।ष् यह सच भी है। लेकिनए प्रश्न यह भी है कि अभिव्यक्ति का दायरा आज तक कौन निर्धारित कर पाया हैघ् व्यक्ति का जीवन प्रवाह निरंतर हैए तो उसकी अभिव्यक्ति भी निरंतर होगी। अभिव्यक्ति अंगड़ाई भी तो ले सकती है। तब क्या किसी व्यक्ति की पहचान सीमित ही रहेगीघ् शायद नहीं।
साथियोंए अब तक मेरी तीन कृतियां गज़ल संग्रह के रूप में प्रकाशित हो चुकी हैं। इसलिए साहित्य जगत में मेरी पहचान अब तक एक गज़लकार के रूप में ही हुई है। लेकिनए यह कृति ष्राम का अंतर्द्वंदष् मेरी मेरी चतुर्थ कृति है। इस लघु खण्ड काव्य को मैने लगभग पांच वर्ष पहले लिखना आरम्भ किया था। अपने आराध्य प्रभु श्रीराम पर लिखने की भावना जागृत हुईए तब मन में प्रभु राम की वेदना लिखने का ही विचार आया था। पता नहीं क्यों वैचारिक दृढ़ता के बावजूद एक लम्बा अन्तराल हो जाने पर भी मैं इस कृति को मूर्तरुप नहीं दे पा रहा था । कुछ पंक्तियाँ ही लिख पाया था और लेखन कार्य अवरुद्ध हो गया। इस दौरान मैं निरंतर मननशील भी रहा कि क्या लिखा जाएए कैसे लिखा जाएए लेकिन असमंजस बना रहा। आखिर असमंजस रहता भी कब तकघ् इसका भी अंत किसी न किसी दिन तो होना ही था। माह जुलाई 2023 में एक कार्यक्रम के दौरान मालवा क्षेत्र के साहित्य गुरु श्री सत्यनारायणजी सत्तन से भेंट का अवसर मिला। तो उन्होंने सफलता का मंत्र दिया और कहा कि . ष्राम जी पर लिखना हैए तो पहले रामसेवक पवनपुत्र का आशीर्वाद जरुरी है। बिना उनकी अनुमति के प्रभु रामजी पर लिखना संभव नही ।ष् अस्तुए भगवान श्रीहनुमानजी का आशीर्वाद व उनकी आज्ञा पाकर पुनरू लिखना प्रारंभ किया । जो कृति विगत पांच वर्ष से अधूरी थीए वह इस दिव्य प्रताप से शीघ्र ही पूरी हो गई और अब आपके हाथ में है। इस अवसर पर मैं यह विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगा कि जिस प्रकार पूजा पद्धति दो तरह की होती हैए एक होती है .विधान पूजाए दूसरी भाव पूजा। श्भाव पूजाश् के लिए किसी विधान की आवश्यकता नहीं होतीए किंतु निर्मल मन से की गई यह भाव पूजा भी ईश्वर स्वीकार करता है। इसी प्रकारए आप मेरी इस कृति में किसी श्छंद विधान का अनुपालन नहींश् पाएंगेए तथापि मुझे विश्वास हैए इस काव्य के माध्यम से आप प्रभु राम के प्रति श्मेरे भाव तरंगोंश् को आत्मसात कर स्वयं को ईश्वर से जुड़ा अवश्य पाएंगे।
इस काव्य साधना के दौरान मुझे साहित्य गुरु आदरणीय सत्यनारायण श्सत्तनश् का मार्गदर्शनए साहित्य साधनारत भाई श्री प्रदीप कुमार अरोरा का प्रोत्साहन व जीवन संगिनी अरुणा की ओर से कदम.कदम पर जो संबल प्राप्त हुआ हैए इस हेतु मैं आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।
मैं अपने पाठकों से अपेक्षा करता हूं कि कृति के संदर्भ में आपके अमूल्य विचार मुझे अवश्य प्राप्त होंगे।
सादर।
डॉ. अनिल श्रीवास्तव
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